मेरी कविता
मैं भी कविता
लिखता हूँ--
और तुम भी.....
मेरी छपती है—
और तेरी भी ।
मैं अपनी कविता को
बार-बार पढ़ता हूँ—
और तेरी कविता
को....
कभी देखता भी नहीं ।
मानता हूँ—
तेरी कविता
मेरी कविता से
बहुत अच्छी होगी ।
पर,
मेरी कविता, मेरी
है...
चाहे जैसी भी हो,
मेरी है...
मेरी अपनी लिखी
हुई ।
मेरा अनुभव, मेरी
पीड़ा
मेरी खुशी, मेरा
दर्द
और न जाने
क्या-क्या
सबकुछ मिला है
उसमें ।
इसलिए,
मैं अपनी कविता से
प्रेम करता हूँ और
सिर्फ
उसे ही पसन्द करता
हूँ ।
चाहे वह, दूसरों
के लिए
अचछी हो, या न हो
पर मेरे लिए तो बहुत
अच्छी है
क्योंकि वह मेरी
अपनी है ।।#।।