नागरी लिपि संगोष्ठी
नागरी लिपि
परिषद्, नई दिल्ली एवं
पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय केन्द्रीय हिंदी संस्थान के सेमिनार
कक्ष में दिनांक 7 मार्च 2014 को एक दिवसीय नागरी लिपि संगोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ
पत्रकार शिलांग दर्पण के कार्यकारी संपादक श्री सतीश चन्द्र झा कुमार की अध्यक्षता
में किया गया। मुख्य अतिथि एवं मेघालय हिंदी प्रचार परिषद् के सचिव श्री सकलदीप
राय ने नागरी लिपि की वैज्ञानिकता का विस्तृत परिचय देते हुए कहा कि देश की एकता
के लिए नागरी लिपि का प्रयोग प्रत्येक राष्ट्रभाषा के लिए करना चाहिए। अपने
अध्यक्षीय भाषण में श्री सतीशचन्द्र झा कुमार ने नागरी लिपि की महत्ता पर प्रकाश
डालते हुए इसकी उपयोगिता के विषय में चर्चा की। उन्होंने कहा कि संसार की सभी
लिपियों में नागरी लिपि सर्वश्रेष्ठ लिपि है। इसके प्रचार से देश की एकता मजबूत
होगी और साहित्य का देशव्यापी विकास संभव होगा।
अपना विचार
प्रकट करते हुए प्रवक्ता केन्द्रीय हिंदी संस्थान, डा. सुनिल कुमार ने कहा कि नागरी लिपि सबसे सक्षम लिपि है। दूसरी लिपियाँ
नागरी लिपि की तरह समर्थ नहीं हैं। खासी भाषा के लिए नागरी लिपि बिल्कुल उपयुक्त
लिपि है। हमें विश्वास है कि धीरे-धीरे इस लिपि को पूरे फूर्वोत्तर भारत में
अपनाया जाएगा।
गोरखा सेकण्डरी
स्कूल की शिक्षिका डा. अरुणा कुमारी उपाध्याय ने अपना विचार रखते हुए कहा कि भारत
की सभी भाषाओं को यदि नागरी लिपि में भी लिखा जाए तो राष्ट्र की एकता और मजबूत हो
सकती है। यहां की प्रचलित बोलियों के लिए भी यह लिपि उपयुक्त है। आवश्यकता है
प्रयास करने और इसका उपयोग बढ़ाने की। इस लिपि को सीखने के लिए छात्र आगे आये तो
अवश्य सीख सकते हैं।
सेंट ऑन्थोनी
कॉलेज की प्रवक्ता डा. फिल्मिका मारबनियांग अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि
खासी भाषा के लिए नागरी लिपि बिल्कुल उपयुक्त है लेकिन चूँकि खाफी पहले से रोमन
में यह भाषा लिखी जा रही है इसलिए इस भाषा के लिए नागरी लिपि को अपनाना बहुत
मुश्किल है। परंतु जो ध्वनियाँ खासी में प्रयुक्त होती हैं वे सभी ध्वनियाँ नागरी
लिपि में मौजूद हैं। हम नागरी लिपि में खासी भाषा को लिखने की शुरुआत कर सकते हैं
लेकिन कठिनाई यह है कि जो वरिष्ठ लोग हैं वे नागरी लिपि नहीं जानते हैं। आज की
पीढ़ी के लिए यह लिपि आसान हो सकती है। इस पर विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है।
आर्मी स्कूल के
वरिष्ठ शिक्षक डा. अवनिन्द्र कुमार सिंह ने अपने आलेख के माध्यम से बताया कि नागरी
लिपि कोई सामान्य लिपि नहीं है। इस लिपि की अपनी एक सांस्कृतिक विरासत है। दुनिया
का कोई भी देश देवनागरी लिपि के समकक्ष बैठने की जुगत नहीं कर सकता है। भारत के
संविधान की आत्मा ने इसे राजलिपि का सर्वोच्च स्थान प्रदान किया है। देश की
राष्ट्रीय भाषा के साथ इसका प्रत्यक्ष जुड़ाव है। जिस तरह से हिंदी हमारे भारत
गणराज्य की धड़कन बनी उसी तरह से यह लिपि भी हमारी धड़कन बनी है। देवनागरी लिपि
बारतीय भाषाओं की आदर्श लिपि है। इसकी वैज्ञानिकता स्वयंसिद्ध है। यह कलात्मक है, भाषाविदों द्वारा इसकी
वैज्ञानिकता की सूक्ष्म विवेचना की जाती है। अपने आलेख को समाप्त करते हुए डा.
सिंह ने कहा कि भाषा और देवनागरी लिपि की प्रकृति संयोगात्मक है, वियोगात्मक नहीं। कोई
भा भाषा तभी अच्छी लगती है जब उसकी कोई लिपि हो और विचार तब अच्छे लगते हैं जब कोई
लिपि व्यक्त करने में सक्षम हो।
जवाहर नवोदय
विद्यालय के हिंदी शिक्षक श्रा जानमोहम्मद अंसारी ने अपने आलेख के माध्यम से कहा
कि भारत के इस भूभाग में जितनी भाषाएं एवं बोलियां पाई जाती हैं, उन सभी को यदि
देवनागरी लिपि न्म लिखा जाए तो विनोबा भावे की सोच और विश्व लिपि की अवधारणा को एक
जमीनी स्तर मिल जाए और अलगाववाद को एक करारा जवाब। इसके लिए सतह पर कार्य करने की
आवश्यकता है। श्री अंसारी ने खासी भाषा की चर्चा करते हुए कहा कि मेघालय राज्य में
चार पहाड़ी जनजातियों द्वारा बोली जाने वाली खासी भाषा पर मैंने अध्ययन किया तो
पाया कि खासी भाषा के लिए सबसे उपयुक्त और प्रासंगिक लिपि सिर्फ देवनागरी ही है।
खासी भाषा के अधिकतर शब्द या तो हिंदी से लिए गये हैं या अन्य भारतीय भाषाओं से।
अंत में श्री अंसारी ने कहा कि देवनागरी लिपि को खासी भाषा के लिए अपना कर इस भाषा
का कल्याम किया जा सकता है।
आर्मी स्कूल की
शिक्षिका डा. अनीता पण्डा ने अपने आलेख के माध्यम से कहा कि नागरी लिपि पूर्णतः
वैज्ञानिक एवं पूर्ण संभावनाओं से युक्त लिपि है। हमारे विद्वजन ने पूरे देश की
एकता हेतु समस्त भारतीय भाषाओं और बोलियों के ले क ही लिपि की कल्पना की थी। इसके
ले सबसे उपयुक्त नागरी लिपि है। इसकी वर्ण माला, उच्चारण आदि की व्यापकता के कारण सभी भारतीय भाषाओं को लिखा जा सकता है। डा.
पण्डा ने बताया कि यदि सारी भारतीय भाषाओं को एक ही लिपि में लिखा जाए तो इससे कई
लिपियों के बोझ से बचा जा सकता है। सभी भारतीय भाषाओं और बोलियों के लिए नागरी
लिपि सर्वथा उपयुक्त है। सारी भारतीय भाषाओं और बोलियों की एक लिपि होना पूरे भारत
को एकता के सूत्र में बाँधता है और आपस में सांस्क-तिक एकता को जोड़ता है। हमारी
राजभाषा और लिपि ही हमारी असिमिता है और पहचान भी।
इस अवसर पर
श्री तन्जीम अहमद और श्री जानमोहम्मद अंसारी ने नागरी लिपि पर अपनी अपनी कविताओं
का पाठ भी किया। इस संगोष्ठी का सफल संचालन डा. अनीता पण्डा ने किया तथा इसका
समापन स्थानीय संयोजक डा. अकेलाभाइ के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। इस अवसर पर श्री
रामबुझावन सिंह, श्रीमती आशा पुरकायस्थ, श्री सपन भोवाल, दीक्षा जैन, रुबी सिन्हा, गीता लिम्बू, राजकुमारी राय, शोभा गुप्ता आदि
सहित शिलांग के विभिन्न विद्यालयों के
हिंदी शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
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